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थार पर जिंदगी

कासिम खुर्शीद

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :12
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6160
आईएसबीएन :81-237-4781-0

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कासिम खुर्शीज की कहानी थार पर जिंदगी ...

Thar Per Jindagi -A Hindi Book by Kasim Khurshid

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

शाम हो चुकी थी। किसना अब तक नहीं लौटा था। पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। किसना के आने से पहले दूर से बकरियों भेंडों की आवाजें मिल जाया करती थीं। आज तो जैसे दूर-दूर तक सब कुछ चुप-चुप सा था। कहीं से किसना के गाने की आवाज भी नहीं आ रही थी। कुछ और अंधेरा हुआ तो मायूसी परसने लगी।

किसना की पत्नी फूली रेत के टीले की ओर धीरे-धीरे बढ़ने लगी। किसना दूर से ही दौड़ता हुआ आया करता था। फूली उसे आते देखकर रोटी की तैयारी शुरू कर दिया करती थी। जरी सी भी देर होती तो किसना शोर मचाने लगता।
ढाणियों में बसे लोगों में एक और था, जो अब तक नहीं लौटा था, अमीरा....
हां वहीं अमीरा जो पहले भी दो-दिन या तीन-दिन के बाद लौटता रहा है।

अमीरा अकेले ढाणी से निकला था। शहर में कहीं काम करता था। वह अब भेड़-बकरियों को लेकर नहीं निकलता था। जबकि पहले ऐसा नहीं था। दोनों अच्छे दोस्त थे। साथ-साथ निकला करते और फिर साथ-साथ लौटा भी करते थे। मगर इस बार अकाल पड़ने के बाद अमीरा एकदम टूट गया था। उसने किसना को भी समझाया था कि शहर में जाकर बस जाए। और वहीं कुछ काम करे। मगर ये सब इतना आसान नहीं था। ढाणी के लोग तो ऐसे अकाल के आदी हो चुके थे। मुसीबत का जमकर मुकाबला करते थे। तब ऐसे में कोई न कोई रास्ता निकल आया करता था। और अंत में उनका पशुपालन ही काम आया करता था।


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